जयपुर न्यूज़ डेस्क, जयपुर राजधानी के आमेर तहसील के गांव मानपुरा माचेड़ी को धनतेरस की लक्ष्मी के नाम से भी जाना जाता है। यहां 250 महिलाएं परिवार के लिए धन और मान दोनों कमा रही हैं। गांव में कारपेट बुनाई का काम यूं तो 1969 में शुरू हो गया था, लेकिन तब ठेकेदार काम करवाते थे और बुनकरों काे जरा-जरा सी खामियां दिखा कर पैसे काट लेते थे।बुनकरों के शोषण का यह सिलसिला 2007 में तब खत्म हुआ, जब जयपुर रग्स ने यहां प्रवेश किया। जयपुर रग्स ने बुनकरों को संबल देना शुरू किया तो लोग जुड़ने लगे। आज 50 से अधिक लूम्स गांव में लगी हैं, जिन पर करीब 250 महिलाओं को बुनाई का काम मिल रहा है। ये लूम्स आर्टिजन महिलाओं के घर पर स्थापित हैं, जहां परिवार व आस-पास की महिलाएं आकर बुनाई का काम करती हैं। बुनकर महिलाओं के लिए समय की सीमा नहीं है, बल्कि जितना काम उस हिसाब से मेहनताना मिलता है।
एक दिन में औसतन 8-10 घंटे लूम पर बैठने वाली पारंगत बुनकर महिला आराम से 8-10 हजार रुपए महीने तक कमा लेती हैं, जो कम समय दे पाती हैं, उनकी कमाई किए गए काम के अनुसार होती है। कुछ अधिक अनुभवी महिलाएं 10-12 हजार रुपए तक कमा लेती हैं। इस तरह ये महिलाएं अपने समय का सदुपयोग कर रही हैं और परिवार के लिए 8-12 हजार रुपए महीना अर्जित कर रही हैं। इस तरह अपने परिवारों के लिए ये महिलाएं धन तेरस की लक्ष्मी तुल्य हो गई हैं।
पंचायत में 16 पार्षद, इनमें 8 महिला
जयपुर-दिल्ली बायपास पर स्थित गांव में करीब 1500 परिवार रहते हैं और आबादी साढ़े दस हजार से अधिक हैं। साथ ही जयपुर से आधे घंटे की दूरी पर है। गांव में 60 प्रतिशत महिलाएं साक्षर और अपने हितों के लिए जागरूक हैं। गांव की ग्राम पंचायत में 16 में से 8 पार्षद महिलाएं हैं और सरपंच भी महिला।
गांव की आमदनी में ढाई करोड़ की हिस्सेदारी
बुनकर सखी शाति देवी ने बताया कि जयपुर रग्स के काम से इकोनॉमिक ट्रांसफार्मेशन हुआ है और जिन परिवारों की महिलाएं इस काम में जुड़ी हैं, वे परिवार आर्थिक रूप से सक्षम हो रहे हैं। इन महिलाओं के काम के जरिए गांव की अर्थव्यवस्था में औसतन 20 लाख रुपए मासिक अर्थात करीब 2.50 करोड़ रुपए सालाना न्यूनतम प्रवाहित हो रहा है, जिसका लाभ गांव की इकोनॉमी को मिल रहा है।
ग्रामीण महिलाओं को आमदनी व आर्थिक सक्षमता के स्वावलंबन आधारित माॅडल का अध्ययन करने के लिए देश के कई विश्वविद्यालयों के छात्रों के साथ कई विदेशी विशेषज्ञ भी आते हैं। इससे गांव एक केस स्टडी डेस्टिनेशन के साथ सेल्फ सस्टनेबिलिटी का मॉडल भी बन गया है।
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