
जयपुर। गुप्त नवरात्रों के पावन अवसर पर सी-स्कीम स्थित चोमू हाउस सर्किल के निकट सैकड़ों वर्षों पुराने गोपाल मंदिर में नौ दिवसीय अखंड ज्योति एवं यज्ञ का दिव्य आयोजन श्रद्धा—संयम एवं सनातन परंपराओं के अनुसार संपन्न हुआ। तेज आंधी-तूफानों की चुनौती के बावजूद अखंड ज्योति को नौ दिनों तक लगातार प्रज्वलित रखना श्रद्धालुओं की अटल भक्ति और आत्मबल का प्रतीक बना। यह आयोजन सनातन धर्म की उस जीवंत चेतना का प्रमाण था। जो कठिन परिस्थितियों में भी धर्म की लौ को बुझने नहीं देती।
पंडित श्याम शर्मा ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान विशेष रूप से पाताल की मिट्टी से माता दुर्गा एवं भगवान गणेश की प्रतिमाएं निर्माण की गईं। शास्त्रों में वर्णित विधान के अनुसार यह मिट्टी धरती की गहराई से निकालकर प्राप्त की जाती है और इसे पवित्रतम तत्व माना जाता है। यज्ञ की पूर्णाहुति के साथ ही इन प्रतिमाओं को पंचामृत स्नान कराकर मंदिर प्रांगण के यज्ञ कुंड के पास स्थित पुराने सैकड़ों वर्ष पुराने कुंए में विसर्जित किया गया, जो सनातन संस्कृति में प्रकृति और धर्म के संतुलन का प्रतीक है।
इस यज्ञ की विशेष विधि के अनुसार यज्ञकर्ता को नौ दिनों तक केवल एक बार फल और जल का सेवन करना होता है और भूमि पर चटाई बिछाकर ही विश्राम करना होता है। यह आत्म संयम और त्याग का ऐसा प्रतीक है, जो सनातन धर्म की मूल भावना — "तपःस्वाध्याय नित्यं यत्" — को जीवंत करता है।
पूर्णाहुति के अवसर पर शशांक शर्मा तथा आचार्य रिशांक शर्मा द्वारा अंतिम आहुतियां समर्पित की गईं। उन्होंने संपूर्ण सृष्टि के कल्याण, शांति और समस्त सनातन श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना की।
आचार्य रिशांक शर्मा ने बताया कि इस विशेष यज्ञ के दौरान सिद्ध की गईं 51 चांदी की अंगूठियां, श्रद्धालुओं को धन, शक्ति एवं ऊर्जा प्राप्ति के लिए वितरित की गईं। उन्होंने यह भी बताया कि मिट्टी की मूर्तियों का पंचामृत के साथ कुंड में विसर्जन एक प्रदूषण-मुक्त विधि है, जिससे प्रकृति भी संरक्षित रहती है।
यज्ञ समापन पर प्रसादी वितरण और कन्या पूजन का आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया और पुण्य लाभ प्राप्त किया। कन्या पूजन के माध्यम से नारी के दिव्य स्वरूप की पूजा कर समाज को यह संदेश दिया गया कि नारी ही शक्ति है, वही सृजन है, यही मुक्ति का मार्ग है।
यह आयोजन मात्र एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि सनातन धर्म की जीवंत परंपराओं, संयमित जीवन पद्धति, और प्रकृति के प्रति सम्मान का अद्भुत उदाहरण बना। इस आयोजन ने श्रद्धालुओं को गुप्त नवरात्रों के आध्यात्मिक रहस्यों से परिचित कराया और आत्मचिंतन व आत्मबल के मार्ग पर अग्रसर होने की प्रेरणा दी।
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